हमारे बीच कुछ ऐसे लोग होते है, जो भले हमारी तरह साधारण जीवन जी रहे होते है | लेकिन वो अपनी प्रतिभा से सभी के दिलो मे वे बेहतरीन मुकाम हासिल कर लेते है जो की समय के साथ भूल नहीं पाते है वो अपना जीवन साधारण जीते है हम सभी के लिए असाधारण हो जाते है यह बी साधारण व्यक्ति होते है और अवयक्ति होते है Best Rahat Indori Shayari In Hindi जैसे की आप सब जानते है कि राहत इंदौरी जी ने लेखिका से सभी को मन मोहित किया है बहुत से शायरी, स्टेटस लिखे है किसी प्यार के लिखी है तो किसी के गम के लिखी है और इन सब मोहब्बत करने वाले बहुत से होते है जो कि राहत इंदौरी अपनी पहचान अलग बना ली थी और किसी को भी नहीं पता था
कि वो इतनी बढ़िया शायरी लिखते है इसके बीच मे हम आपके लिए के कर आये है जो कि आपको बहुत काम देगी आप इनकी शायरी पड़कर बहुत मजे उठा सकते हो आपका मन बार-बार करेगाआपने राहत इंदौरी के बारे बहुत सा सूना होगा वहे टी.व् शो भी करते है आपसे कुछ लोग उनको अभी भी याद करते होंगे इसलिए Best Rahat Indori Shayari In Hindi आप उनकी शायरी पढ़ने के लिए आये है shayariaan.com पर आने का क्योंकि यहॉ आपको स्टेटस, शायरी, कोट्स, और जोक्स बहुत पढ़ने को मिलेगा
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर जो
मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे
जब तक तुम्हारे हात मिरे हात में रहे
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा मैं
उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
अजनबी ख़्वाहिशें , सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे , कि उड़ा भी न सकूँ
आँख में पानी रखो , होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो , तरकीबें बहुत सारी रखो
रोज़ तारों को नुमाइश में , खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं , अंधेरे में निकल पड़ता हैं
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर जो
मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं पता चला हैं
की मेहमान आने वाले हैं आँखों में पानी रखों, होंठो पे
चिंगारी रखो जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो राह के पत्थर से बढ के,
कुछ नहीं हैं मंजिलें रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो
गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं में आ गया हु
बता इंतज़ाम क्या क्या हैं फ़क़ीर, शाह, कलंदर,
इमाम क्या क्या हैं तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं कभी धुएं की
तरह पर्वतों से उड़ते हैं ये केचियाँ हमें उड़ने से
खाक रोकेंगी की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं
हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं आज से हमने तेरा नाम
ग़ज़ल रखा हैं मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़
दिया मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं जो लोग भूल नहीं करते,
भूल करते हैं अगर अनारकली हैं सबब बगावत
का सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे हवा को धुप,
चरागों को शाम कह देंगे किसी से हाथ भी छुप कर
मिलाइए वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे अब अपने गाँव में
अमरुद पक रहे होंगे भुलादे मुझको मगर, मेरी
उंगलियों के निशान तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए तेरे हाथों में तो
ये कंगन भी ढीले हो गए फूल बेचारे अकेले रह गए है
शाख पर गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
सरहदों पर तनाव हे क्या ज़रा पता तो करो चुनाव हैं
क्या शहरों में तो बारूदो का मौसम हैं
गाँव चलों अमरूदो का मौसम हैं
काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं और हम कुछ नहीं करते हैं,
गजब करते हैं आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं
जितनी अजमत हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं
ये सहारा जो न हो तो परेशां हो जाए मुश्किलें जान ही
लेले अगर आसान हो जाए ये कुछ लोग फरिस्तों से बने
फिरते हैं मेरे हत्थे कभी चढ़ जाये तो इन्सां हो जाए
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं
अन्धेरें में निकल पड़ता हैं उसकी याद आई हैं सांसों,
जरा धीरे चलो धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
लवे दीयों की हवा में उछालते रहना गुलो के रंग पे तेजाब
डालते रहना में नूर बन के ज़माने में फ़ैल
जाऊँगा तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना
जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे में कितनी बार लुटा हु,
मुझे हिसाब तो दे तेरे बदन की लिखावट में हैं
उतार चढाव में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे चले चलो
की जहाँ तक ये आसमान रहे ये क्या उठाये कदम और
आ गयी मंजिल मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे
तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो मल्लाहो का चक्कर छोड़ो,
तैर कर दरिया पार करो फूलो की दुकाने खोलो,
खुशबु का व्यापर करो इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
जा के कोई कह दे, शोलों से चिंगारी से फूल इस बार खिले हैं
बड़ी तैयारी से बादशाहों से भी फेके हुए
सिक्के ना लिए हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से
बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा जो नहीं होगा
वो अखबार में आ जाएगा चोर उचक्कों की करो कद्र,
की मालूम नहीं कौन, कब, कौन सी सरकार में आ जाएगा
नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैंकबूतरों को
खुली छत बिगाड़ देती हैं जो जुर्म करते है
इतने बुरे नहीं होते सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं इतना डरते हैं
तो फिर घर से निकलते क्यों हैं मोड़ होता हैं जवानी का
संभलने के लिए और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं
साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी बुझते हुए दिए की तरह,
जल रहे हैं हम उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा
गयी हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम
इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ मैं निहत्था ही ज़माने
के लिए काफी हूँ हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ एक अख़बार हूँ,
औकात ही क्या मेरी मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ
दिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं सब अपने चहेरों पर,
दोहरी नकाब रखते हैं हमें चराग समझ कर भुझा ना
पाओगे हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार
उठे मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ ऐसे ज़िद्दी हैं
परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ फूँक डालूँगा किसी रोज़
मैं दिल की दुनिया ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना हाथ जब उससे
मिलाओ दबा भी देना नशा वेसे तो बुरी शे है,
मगर “राहत” से सुननी हो तो थोड़ी सी पिला भी देना
इन्तेज़ामात नए सिरे से संभाले जाएँ जितने कमजर्फ हैं
महफ़िल से निकाले जाएँ मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं
लेकिन जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाएँ